दीदी तुम खुश रहो और पनपे तुम्हारे संसार
यही प्रार्थना करते हो ना तुम बार बार;
परंतु हीनभावना के इतने बड़े शिकार
बहू ले आए लेकिन आज तक ना कर पाए स्वीकार
बेटी का तो दूर ना कर पाए मानवीया व्यवहार
क्या यही पूर्वजों ने दिए थे तुम्हे संस्कार?
यही प्रार्थना करते हो ना तुम बार बार;
परंतु हीनभावना के इतने बड़े शिकार
बहू ले आए लेकिन आज तक ना कर पाए स्वीकार
बेटी का तो दूर ना कर पाए मानवीया व्यवहार
क्या यही पूर्वजों ने दिए थे तुम्हे संस्कार?
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